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City News

दैनिक उदयपुर….

उदयपुर में रक्षा बंधन के लिए शुभ मुहूर्त….

प्रदीप द्विवेदी ( WhatsApp- 8302755688). 

*राखी पर्व श्रावण महीने की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है.
*रक्षा बंधन भाई-बहन के भावनात्मक संबंधों और विश्वास को व्यक्त करनेेवाला पर्व है. 
*इस दिन बहन अपने भाई को रक्षा-सूत्र बांधती हैं, अपराह्न का समय रक्षा बन्धन के लिये उत्तम माना जाता है. 
*भद्रा का समय रक्षा बन्धन के लिये निषिद्ध माना जाता है, रक्षा बन्धन (15 अगस्त) के दिन भद्रा सूर्योदय से पहले समाप्त हो गयी.
*पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ- 14 अगस्त 2019 को 03.45 पीएम बजे से,
*पूर्णिमा तिथि समाप्त- 15 अगस्त 2019 को 05.59 पीएम बजे तक.
उदयपुर में रक्षा बंधन, 15 अगस्त 2019 के लिए शुभ मुहूर्त….
*अपराह्न का मुहूर्त- 01.57 पीएम से 04.31 पीएम तक.
उदयपुर में रक्षा बंधन, 15 अगस्त 2019 के लिए चौघड़िया शुभ मुहूर्त इस प्रकार हैं….
*शुभ- 06.13 एएम से 07.50 एएम
*चर- 11.03 एएम से 12.40 पीएम
*लाभ- 12.40 पीएम से 02.16 पीएम
*अमृत- 02.16 पीएम से 03.53 पीएम
यहां दी जा रही जानकारियां संदर्भ हेतु हैं, स्थानीय पंरपराओं और स्थानीय धर्मगुरु के निर्देशानुसार राखी-पर्व मनाएं!

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शूटिंग स्पाॅट…. यकीन करो, उदयपुर राजस्थान में ही है!

प्रदीप द्विवेदी ( WhatsApp- 8302755688). गाइड, मेरा साया, यादगार, राजा जानी जैसी अनेक फिल्मों की उदयपुर में तब शूटिंग हो गई थी जब कैमरा भी देखने की चीज हुआ करता था! बावजूद इसके, अभी तक फिल्मी दुनिया के कैमरे भी थोड़ा-सा ही उदयपुर देख पाए हैं. यहां की हरियाली, झीलें आदि देख कर किसी को यकीन नहीं होगा कि यह रेगिस्तान के लिए चर्चित राजस्थान में है? लेकिन यकीन करो, उदयपुर राजस्थान में ही है!

उदयपुर के बारे में प्रसिद्ध पत्रकार सुभाष शर्मा (WhatsApp- 9460186509) दैनिक जागरण में अपनी रिपोर्ट…. इस तरह बसा उदयपुर, बाबाजी की धूणी पर बना राजमहल- उदयपुर के स्थापना की रोचक कहानी… में लिखते हैं- मेवाड़ की राजधानी उदयपुर की स्थापना 1559 में महाराणा उदयसिंह ने की, किन्तु तिथि को लेकर इतिहासकारों के अलग-अलम मत हैं. कुछ इतिहासकार हिन्दू कैलेंडर के अनुसार उदयपुर की स्थापना आखातीज के दिन मानते हैं, तो कुछ का कहना है कि उदयपुर की स्थापना पंद्रह अप्रैल 1553 में ही हो गई थी, जिसके प्रमाण उदयपुर के मोतीमहल में मिलते हैं, जिसे उदयपुर का पहला महल माना जाता है, जो अब खंडहर में तब्दील हो चुका है! पूरी रिपोर्ट यहां पढ़ें….

https://www.jagran.com/rajasthan/jaipur-interesting-story-of-establishing-udaipur-19137747.html

कितना खूबसूरत है उदयपुर, यह सरकारी वेब साइट पर देखा जा सकता है….

http://www.tourism.rajasthan.gov.in/hi/udaipur.html

Tribal huts, Shilpgram, Udaipur, Rajasthan India.

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Ssharad Malhotra and Ripci Bhatia quick holiday to Udaipur! उदयपुर- शौर्य, बलिदान का जीवंत अध्याय…

Mumbai. TV’s heartthrob Ssharad Malhotra and his wife Ripci are giving us major #couplegoals with some lovely pictures from their Udaipur vacay. It’s the couple’s first trip together after marriage. “Udaipur is like home to me. I have a very special connection with the city as I have shot for Bharat Ka Veer Putra – Maharana Pratap here. The warmth, love, and respect that I receive from the locals, every time I come here are surreal,” he tells us, adding, “It was actually a work trip but thanks to the rains, the shoot got postponed and we got some time to be touristy.” The couple, who got married on April 20, didn’t get a chance to go on a honeymoon yet. Ssharad says that he is planning a Europe trip in August. “Ripci is very supportive and understands the hectic life of a TV actor. We didn’t get a chance to go anywhere after our marriage, but I am planning it sometime in August. I will go there with no work on my mind. We were contemplating a few places in and around Europe,” he says.

Talking about life after marriage, the actor says that he feels blessed to have Ripci in his life. “So far it is great and I hope it continues like this. We are more like best buddies and not the stereotypical husband and wife. The best part is that we both give each other space when needed and are also there for each other as and when required. The only thing I found difficult initially was sharing my wardrobe with her. It was not easy at all.”  

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*विनोद बब्बर… शौर्य, बलिदान का जीवंत अध्याय उदयपुर

गत वर्ष साहित्य मंडल के कार्यक्रम में श्रीनाथद्वारा जाने का अवसर मिला। भगवान श्रीनाथजी के पाटोत्सव के अवसर पर आयोजित इस त्रिदिवसीय समारोह में हमारे आग्रह पर हिम्मतनगर गुजरात से पूज्य स्वामी डॉ, गौरांगशरण देवाचार्य तथा महंत सुनीलदास भी श्रीनाथद्वारा पधारे। हमें बालासोर सदन में चार बिस्तरों वाला कक्ष उपलब्ध करवाया गया। इस दौरान हमने श्रीनाथजी के दर्शन लाभ के साथ-साथ ब्रज -भाषा से संबंधित अनेक कार्यक्रमों का आनंद लिया।

श्रीनाथद्वारा में विराजित श्रीनाथ जी के विषय में जो जानकारी प्राप्त हुई उसके अनुसार गोवर्धन स्वरुप यह छवि मथुरा में विराजित थी जिसे मुगलकाल में सुरक्षा की दृष्टि से राजस्थान लाया गया था। सर्वप्रथम श्रीनाथजी  यहाँ से 19 किलोमीटर दूर घसियार नामक स्थान पर पधारे जिसे फाल्गुन कृष्ण सप्तमी संवत 1728 को  यहाँ लाकर प्रतिष्ठित किया गया। तभी से प्रभु श्रीनाथजी का पाटोत्सव फाल्गुन कृष्ण सप्तमी को मनाया जाता है जिसमें देश-विदेश के लाखों श्रद्धालु भाग लेते हैं। इस स्थान का पुराना नाम सिंहाड़ था जो प्रभु श्रीनाथजी के आगमन के बाद श्रीनाथद्वारा हो गया। हमने हाइवे पर स्थित घसियार के प्राचीन मंदिर के भी दर्शन किये। प्रातः मंगला दर्शन के बाद हम हल्दीघाटी सहित उदयपुर के प्रमुख स्थलों का अवलोकन करने का निश्चय किया।

चारों ओर उबड़-खाबड़ पहाड़ और बीच में सुनसान घाटी को हल्दीघाटी क्यों कहा जाता है, इसका उत्तर वहाँ पहुंचते ही मिल गया। एक संकरे से दर्रें को पार करते ही देखा कि यहाँ की माटी का रंग पीला है। शायद इसी कारण इस घाटी को हल्दीघाटी का नाम दिया गया।  यही वह स्थान है जहाँ 18 जून 1576 को मुगल सम्राट अकबर और मेवाड़ के महाराणा प्रताप के बीच ऐतिहासिक युद्ध हुआ था।

मुगलों की सेना का नेतृत्व मानसिंह कर रहा था। महाराणा प्रताप की सेना ने छापामार युद्ध पद्धति का अनुसरण करते हुए मुगलों के दांत खट्टे कर दिये। महाराणा प्रताप और मानसिंह में आमने-सामने मुकाबला भी हुआ। प्रताप के भाले के वार से स्वयं को बचाने के लिए मानसिंह हाथी के ओहदे के पीछे छिप गया। इसी दौरान प्रताप के स्वामीभक्त घोड़े चेतक के पैर में चोट लग गई लेकिन उसके बावजूद चेतक ने अपने स्वामी को एक बड़े नाले को पार करवाकर सुरक्षित स्थान पर पहुँचा दिया। जिस स्थान पर चेतक ने अंतिम सांस ली, आज वहाँ चेतक का स्मारक देखकर अहसास हुआ कि वतन पर मिटने वाले घोड़े को जो श्रद्धा प्राप्त है शायद वह मुगलों के चाटुकार रहे मानसिंह को भी प्राप्त नहीं हुई।

इसी स्मारक के बिल्कुल पास महाराणा प्रताप म्यूजियम बनाया गया है। टिकट लेकर हमने प्रवेश किया। महान राष्ट्र भक्त के इस स्मारक पर बहुत कम चहल-पहल देखकर मन में बहुत ग्लानि हुई क्योंकि आज चरित्राहीन नेताओं- अभिनेताओं के लिए भारी भीड़ उमड़ती है। इस संग्रहालय में हल्दीघाटी और महाराणा प्रताप से संबंधित समस्त जानकारी जैसे अस्त्रा-शस्त्रा, वेशभूषा, साहित्य आदि को  बहुत अच्छे ढंग से दिखाया गया है। यहाँ एक फिल्म दिखाने के बाद लाइट एण्ड साउंड  कार्यक्रम के माध्यम से उस काल की घटनाओं को इस तरह से प्रस्तुत किया गया कि इतिहास के वे गौरवशाली क्षण जीवांत हो उठे। इसी संग्रहालय में छोटा  सा बाजार भी हैजहाँ राजस्थानी शैली की कलात्मक वस्तुए बिक्री के लिए उपलब्ध हैं। एक स्थान पर महाराणा प्रताप की पोशाक में फोटो खिंचवाने की व्यवस्था भी है।

हल्दीघाटी की ऐतिहासिक धरा को प्रणाम कर हम उदयपुर की ओर बढ़े। अरावली की पहाडि़यों के घुमावदार रास्तों से आगे बढ़ते हुए हम जब उदयपुर पहुंचे तो समय काफी हो चुका था और सुबह से कुछ भी ग्रहण न करने के कारण भूख भी लगी थी इसलिए सबसे पहले दालभाटी-चूरमा का आनंद लिया और उसके बाद उदयपुर की ऐतिहासिक झीलों की ओर बढ़ें।

उदयपुर को झीलों की नगरी कहा जाता है क्योंकि यहाँ कई झीलें हैं।  सबसे खूबसूरत झील है पिछौला झील, जोकि सिटी पैलेस के बिल्कुल साथ है। इसी झील के बीचोंबीच लेक पैलेस है जोकि आजकल पंचसितारा होटल का रूप धारण कर चुका है। इसके अतिरिक्त जग निवास के नाम से मंदिर भी है। इस झील और इन महलों को देखने देश-विदेश से लाखों लोग आते हैं क्योंकि यहाँ का नजारा सचमुच निराला है।

इसका अवलोकन करते हुए मन में सवाल उठता है कि इतनी गहरी झील के बीचोंबीच ये महल आखिर बनाये भी गये तो कैसे? यह तो सर्वविदित ही है कि इस नगर की स्थापना महाराजा उदय सिंह ने की। कहा जाता है कि एक बार उदयसिंह शिकार खेलते हुए इस झील के किनारे पहुँचे तो यहाँ धुनी लगाये एक ऋषि बैठे थे। उन दिनों उदयसिंह मुगलों तथा दूसरें अनेक राजाओं की आँखों की किरकिरी बने हुए थे। राजा ने ऋषि को प्रणाम किया जो उन्होंने राजा को झील के किनारे अपनी राजधानी बनाने को कहा और आशीर्वाद दिया कि यहाँ कोई भी तुम्हारा बाल तक बांका न कर पायेगा। बस तभी से राजा ने चित्तौड़गढ़ को छोड़कर यहीं बसने का निर्णय लिया।

1569 में बनना शुरु हुआ सिटी पैलेस राजस्थान का सबसे बड़ा महल है। भारतीय के साथ-साथ चीन और यूरोप की वास्तुकला के बेहतरीन नमूने को देखना सुखद अनुभव है। आजकल इसके एक भाग को संग्रहालय के रुप में परिवर्तित कर दिया गया है जहाँ शाही साजो सामान को सुंदर ढंग से प्रदर्शित किया गया है। इतिहासकारों ने इस महल को भारत के विंडसर पैलेस की संज्ञा दी है। इसके अतिरिक्त सहेलियों की बावड़ी, फतेहसागर झील, सज्जनगढ़ में मानसून पैलेस, शिल्पग्राम, मोती की मगरी, जगदीश मंदिर, कांच गैलेरी, सहेलियों की बाड़ी जैसे अनेक दर्शनीय स्थान भी हैं। मोती की मगरी फतेहसागर झील के पास पहाड़ी पर वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप की भव्य प्रतिमा है। जिसके चारों ओर सुंदर बगीचे हैं। यहाँ का रॉक गार्डन भी देखने योग्य है। 

उदयपुर के आसपास के प्रमुख दर्शनीय पर्यटक स्थलों में नागदा, एकलिंगजी, कांकरोली, राजसमंद झील, उदयपुर की सात बहनों का मंदिर, सास-बहू का मंदिर भी प्रसिद्ध हैं। ‘सास-बहू का मंदिर’ जैसाकि नाम सुनकर ही कौतुहल होता है कि यह कैसा स्थान होगा।  यह जानकर बेहद आश्चर्य हुआ कि उदयपुर से 28 किमी दूर प्रसिद्ध एकलिंग जी के मंदिर से थोड़ा पहले कच्चे रास्ते पर खड़ा यह मंदिर वास्तुकला का बेजोड़ नमूना है। विक्रमी संवत ग्यारहवीं शताब्दी के आसपास बने सास बहू के मंदिर के विषय में कहा जाता है कि मेवाड़ घराने की राजमाता और उनकी बहू द्वारा निर्मित मंदिर का असली नाम सहस्रबाहू मंदिर था जो बिगड़ कर सास-बहू का मंदिर हो गया।

यहाँ विष्णु तथा शेषनाग मंदिर हैं। कला संस्कृति के उत्कृष्ट नमूने के रुप में आज भी विद्यमान ये दोनों मंदिर एक ही परिसर में स्थित हैं। मंदिर की बाहरी दीवारों पर सुर-सुंदरियों की प्रतिमाएं सूक्ष्म नक्कासी से उकेरी गई हैं। इनकी भव्यता की तुलना आबू के दिलवाड़ा के मंदिरों से की जा सकती हैं। सास बहू मंदिर के प्रवेशद्वार पर बने छज्जों पर पूरी महाभारत कथा अंकित है। बायें स्तम्भ पर शिव- पार्वती की प्रतिमाएं हैं तो तोरण भी देखते ही बनते हैं।

सास-बहू के मंदिर के बीच में ब्रह्माजी का मंदिर है। इस मंदिर का गुम्बद छोटा होते हुए भी बारीक जाली जैसी नक्काशी से शोभायमान है। ये मंदिर अत्यंत प्राचीन तो हैं लेकिन अनेक मंदिरों से बेहतर स्थिति मे माने जा सकते हैं। इन्हें संरक्षित स्मारकों की श्रेणी में शामिल तो अवश्य किया गया है लेकिन शासन की ओर से संरक्षण की व्यापक व्यवस्था तो दूर, इसके इतिहास और महत्त्व की जानकारी देने वाला कोई पर्यटन अधिकारी भी न होना क्षोभ उत्पन्न करता है क्योंकि ऐसी लापरवाही से इतिहास के ये मूक गवाह जो आने वाली पीढि़यों को उसके गौरवशाली अतीत से परिचित करवा सकते हैं, एक दिन लापता हो जायेंगे। उदयपुर का यह संक्षिप्त प्रवास अविस्मरणीय रहेगा। (उर्वशी)

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