डूंगरपुर में रक्षा बंधन के लिए शुभ मुहूर्त….
डूंगरपुर में रक्षा बंधन के लिए शुभ मुहूर्त….
प्रदीप द्विवेदी (WhatsApp- 8302755688).
-राखी पर्व श्रावण महीने की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है.
-रक्षा बंधन भाई-बहन के भावनात्मक संबंधों और विश्वास को व्यक्त करनेेवाला पर्व है.
-इस दिन बहन अपने भाई को रक्षा-सूत्र बांधती हैं, अपराह्न का समय रक्षा बन्धन के लिये उत्तम माना जाता है.
-भद्रा का समय रक्षा बन्धन के लिये निषिद्ध माना जाता है, रक्षा बन्धन (15 अगस्त) के दिन भद्रा सूर्योदय से पहले समाप्त हो गयी.
-पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ- 14 अगस्त 2019 को 03.45 पीएम बजे से,
-पूर्णिमा तिथि समाप्त- 15 अगस्त 2019 को 05.59 पीएम बजे तक.
-डूंगरपुर में रक्षा बंधन, 15 अगस्त 2019 के लिए शुभ मुहूर्त….
अपराह्न का मुहूर्त- 01.57 पीएम से 04.31 पीएम तक.
-डूंगरपुर में रक्षा बंधन, 15 अगस्त 2019 के लिए चौघड़िया शुभ मुहूर्त इस प्रकार हैं….
शुभ- 06.14 एएम से 07.50 एएम
चर- 11.03 एएम से 12.40 पीएम
लाभ- 12.40 पीएम से 02.16 पीएम
अमृत- 02.16 पीएम से 03.52 पीएम
-यहां दी जा रही जानकारियां संदर्भ हेतु हैं, स्थानीय पंरपराओं और स्थानीय धर्मगुरु के निर्देशानुसार राखी-पर्व मनाएं!
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जीवन में अंतरमन के भावों को बदल कर ही आत्मशुद्धी प्राप्त की जा सकती है…. आचार्य सुनील सागर महाराज
प्रदीप जोशी (WhatsApp- 9928528889). आचार्य सुनील सागर महाराज ने ससंघ सानिध्य में मंगलवार को ऋषभ वाटिका स्थित सन्मति समवशरण प्रवचन सभागार, सागवाड़ा (डुंगरपुर) में कहां कि- जीवन में परिवर्तन होना बहुत आवश्यक है. अभिनय कर दिखावटी और वास्तविक परिवर्तन होने का बड़ा महत्व है, दो तरह के बदलाव देखने को मिलते हैं, एक- भौतिक तथा दूसरा- रासायनिक!
उन्होंने कहा कि- भौतिक परिवर्तन अस्थाई अथवा कुछ समय के लिए होता है, मगर रसायनिक परिवर्तन जीवन के रास्ते को ही बदल देता है, जिस तरह पानी को बर्फ बना दो तो यह भौतिक होता है, लेकिन यदि दूध को घी बना दो तो यह रासायनिक परिवर्तन होता है. बर्फ से पानी बनाया जा सकता है, लेकिन घी से वापस दूध नहीं बनाया जा सकता है. दूध कुछ समय बाद खराब हो सकता है, मगर घी लंबे समय तक खराब नहीं होता है. जीवन में असली बदलाव का मर्म भी यही है.
उन्होंने कहा कि जीवन में अंतरमन बदलाव की जरूरत है. मन के भावों को बदल कर ही आत्मशुद्धि प्राप्ति की जा सकती है.
आचार्य सुनील सागर महाराज ने कहा कि- पानी में रहने पर भी पत्थर पिघलता नहीं, दूध से धुलने पर भी कोयला उज्जवल होता नहीं, जब तक ना हो भीतर से भावों की सफाई, तब तक लाख कोशिश कर लें आदमी बदलता नहीं. उन्होंने कहा कि- कई बार रूप और रंग बदल जाता है, लेकिन प्रवृत्तियों में बदलाव नहीं होता है, तो जीवन के उपयोग और उसकी सार्थकता का कोई महत्व नहीं रहता है.
उन्होंने कहा कि- बाहरी आवरण कैसा भी हो? मगर भीतर के भावों से ही जीवन तथा संसार के समस्त जिवों की पहचान होती है! चेहरा अगर भोला है और मन बारूद का गोला है, तो ऐसा बनावटी दिखावा करना व्यर्थ है.
उन्होंने कहा कि- अरिहंत के पुत्रों में अरिहंत के अंश मात्र भी गुण दिखने चाहिए, यदि मानव शरीर में राक्षस जैसे गुण नजर आए तो स्वाभाविक है कि मन के मूल भावों का अंत हो चुका है.
उन्होंने कहा कि भेद-विज्ञान के रहस्य को जानकर प्रभु भक्ति के साथ सत्संग और संगति को बदलकर वास्तविक भावों को प्राप्त किया जा सकता है, अर्थात…. राक्षस प्रवृत्ति को भी इंसान बनाया जा सकता है, त्यागीव्रति और वितरागी होकर कई गंवार कहे जाने वालों ने अपना जीवन संवार कर महान दार्शनिक, चिंतन एवं संतों का अवतरण स्वरुप इस संसार में प्रस्तुत किया है. कई शास्त्रों में इसके ज्वलंत उदाहरण देखने को मिलते हैं.
उन्होंने कहा कि भावों में कल्याण का दृष्टिकोण रखना होगा तथा योग्यता के साथ लक्ष्य का निर्धारण और चारित्रिक भावना के साथ आत्म शुद्धि के मार्ग पर चलकर सहज भाव से मानव जीवन की वास्तविक सार्थकता को प्राप्त किया जा सकता है. आचार्य सुनील सागर महाराज ने धर्म सभा में कहा कि जो सच्चा ज्ञानी होता है वह किसी से प्रभावित नहीं होता है, तथापि कई बार सम्मान पाकर घमंड करना केवल मूर्खता को दर्शाता है. ज्ञानी का सम्मान हो अथवा अपमान उसे कोई फर्क नहीं पड़ता है.
उन्होंने कहा कि प्रभु का सदैव ध्यान एवं साधना करते हुए व्यस्त रहो तथा मस्त रहो, कभी-कभी छोटी-छोटी बातों से विचलित होने से अपराधिक प्रवृत्ति बढ़ती है, क्योंकि सांप से भी खतरनाक पाप होता है, सांप किसी एक का नुकसान कर सकता है, परंतु पाप पूरी सृष्टि को नुकसान पहुंचा सकता है, इसलिए जीवन में सम्यक दर्शन के साथ ज्ञान की निर्मलता को बनाए रखना आवश्यक है. उन्होंने जीवन में किताबी ज्ञान के साथ व्यवहारिक ज्ञान को महत्व देते हुए कहा कि निरंजन होते हुए जिसे मंजन की जरुरत हो, तो इसे दोहरा चरित्र कहा जाएगा. शुद्ध चरित्र तथा शुद्ध भाव प्रगति के साथ अध्यात्मिक ज्ञान का आभास देते हैं. उन्होंने कहा कि- भगवान ने संसार में बहुत कुछ दिया है, बस दिव्य दृष्टि से उसे पहचान कर अपने मानव जीवन का कल्याण करना ही मुख्य ध्येय होना चाहिए.
प्रारंभ में धर्म सभा को ससंघ मुनि श्रुश्रत सागर महाराज ने संबोधित कर कहा कि सत्संग के दौरान साधक निरंतर अपनी आत्मा को पहचानने के साथ जिज्ञासाओं को शांत करता है. उन्होंने कहा कि सच्चा संत वही है जो नगर में रहकर भी जंगल की अनुभूति करता है. उन्होंने आचार्य सुनील सागर महाराज के तप और साधना की कई महत्वपूर्ण बातों से धर्म सभा को अवगत कराया.
आचार्य का पाद प्रक्षालन का लाभ पवन कुमार कोमल प्रकाश परिवार मंदसौर तथा मंगलाचरण दिल्ली से आए बालक गिरीश जैन ने प्रस्तुत किया. इस अवसर पर प्रतापगढ़ से आए गुरु भक्त भूपेन्द्र चिपड परिवार ने स्वर्ण पात्र से आचार्य का पाद प्रक्षालन किया. सकल दिगम्बर जैन समाज सेठ दिलीप कुमार नोगमिया ने सभी उपस्थित जनसमुदाय का स्वागत एवं आभार प्रगट किया.