अनिताः कोरोना संकट के संकेत भी समझें!
व्यूज. देशव्यापी लॉकडाउन के दौरान व्हीकल, कारखाने आदि बंद रहने का असर पाॅल्युशन पर भी नजर आने लगा है.
खबर है कि मुंबई, दिल्ली सहित कई महानगरों के पाॅल्युशन के स्तर में 25 प्रतिशत तक की कमी दर्ज की गयी है.
सीपीसीबी…. केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के हवाले से खबर है कि अकेले 22 मार्च 2020 को जब जनता कर्फ्यू था, इस दौरान ही हवा में पाॅल्युशन से सबसे ज्यादा प्रभावित रहने वाले प्रमुख महानगरों- दिल्ली, मुंबई, अहमदाबाद और पुणे में हवा की क्वालिटी बेहतर हुई थी.
इन शहरों में पाॅल्युशन के प्रमुख फेक्टर में 15 से 50 प्रतिशत तक गिरावट देखी गयी और जनता कर्फ्यू के बाद लॉकडाउन के दौरान तो एक्यूआई- वायु गुणवत्ता सूचकांक पर देश के एक सौ से ज्यादा प्रमुख शहरों में हवा की क्वालिटी सेटिस्फेक्ट्री लेवल पर पहुंच गयी.
बहरहाल, कोरोना संकट ने यह संदेश तो दे दिया है कि इसके लिए कोरोना से भी कई ज्यादा हम जिम्मेदार हैं.
वैसे तो कई और फेक्टर भी सामने आएंगे, लेकिन हमें अपनी कुछ आदतों में तत्काल सुधार करने की जरूरत है….
*खान-पान पर ध्यान देना. कोशिश होनी चाहिए कि हम अधिकतम वेजिटेरियन रहें. अनावश्यक नाॅनवेज हमारी जिंदगी खतरे में डाल सकता है.
*एक-दूसरे का झूठा खाना बंद करें. इससे प्रेम नहीं बढ़ता, कोरोना जैसे वायरस बढ़ते हैं.
*व्हीकल का गैर-जरूरी उपयोग नहीं करें, इससे पाॅल्युशन बढ़ता है और कोरोना जैसे वायरस से लड़ने की हमारी क्षमता भी प्रभावित होती है.
*अपनी और अपने परिवार की, घर की, मौहल्ले की साफ-सफाई पर विशेष ध्यान दें.
*हम जिस भी ईश्वर में विश्वास रखते हैं, सच्चे मन से उसे अपनाने की कोशिश करें, उनके बताए पवित्र, आदर्श और अहिंसक मार्ग पर चलने की यथाशक्ति कोशिश करें.
*इंडियन लाइफ स्टाइल सबसे बेस्ट है. इसे अपनाने की कोशिश करें!
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अनिताः सूर्यग्रहण के प्रभाव को नकारनेवाले, कोरोना से क्यों इतना डरते हैं?
व्यूज. कुछ लोगों ने सवाल किया कि सूर्यग्रहण के दौरान इतने लोग बाजार में घूम रहे हैं, उन्हें क्या हो गया, जो डर पाला जाए? क्यों घर में बंद रहें, क्यों ग्रहण के बाद साफ-सफाई करें? क्यों सूर्यग्रहण के नियमों का पालन करें?
लोग तो कोरोना के समय में भी बाजारों में घूम रहे हैं, उनमें से कितने प्रभावित हुए? फिर कोरोना से डर कैसा? क्यों घर में बैठे हैं? क्यों मास्क लगा रहे हैं? कोरोना वायरस तो नजर भी नहीं आता है, फिर क्यों बार-बार हाथ धोना?
मुंबई के लाखों लोग नल का पानी पीते हैं? उन्हें क्या हो गया? तो क्यों, कोई वाटर फिल्टर का पानी पिए?
जिन विद्वानों ने हजारों साल पहले बगैर किसी उपकरण के ज्योतिषीय गणनाएं की, सूर्यग्रहण, चन्द्रग्रहण सहित अनेक घटनाओं का सही समय बताया, जिन्होंने विभिन्न ग्रहों की गति बताई, ग्रहों के बारे में विभिन्न जानकारियां दीं, क्या वे अज्ञानी थे? तो, उनकी सलाह कैसे गलत हो सकती है?
प्रतिदिन सूर्योदय होता है और उसका प्रकाश वातावरण को शुद्ध करता है, रातभर में पैदा हुए विभिन्न वायरस को खत्म करता है, यदि यह सिस्टम कुछ देर के लिए रूक जाता है, तो क्या उसका कोई असर नहीं होगा?
साफ है, सूर्यग्रहण के दौरान भी वातावरण के प्यूरिफिकेशन का सिस्टम गड़बड़ा जाता है और इसीलिए सूर्यग्रहण के दौरान और उसके बाद साफ-सफाई के कुछ नियम का पालन करने को कहा जाता है?
यदि आप सूर्यग्रहण के असर पर भरोसा नहीं करते हैं, तब भी इन नियमों का पालन करने में क्या बुराई है?
कमाल की बात तो यह है कि सूर्यग्रहण के दौरान पंछियों, जानवरों का व्यवहार तक बदल जाता है, लेकिन इंसान को कुछ समझ में नहीं आता है, कुछ महसूस नहीं होता है, क्यों? शायद वह अपने ही तर्क-कुतर्क में उलझ कर रह गया है!
इस वर्ष 21 जून को सूर्यग्रहण था और 25 वर्षों बाद यह पहला मौका है जब वलयाकार, बोले तो…. अंगूठी जैसा दिखने वाला सूर्यग्रहण था. सूर्यग्रहण के दौरान सूर्य का सर्किल एक चमकती अंगूठी जैसा नजर आ रहा था.
याद रहे, कुछ वायरस तत्काल असर दिखाते हैं, कुछ थोड़ी देर बाद, तो कुछ लंबे समय के बाद, इसलिए बेवजह के तर्क-कुतर्क से दूर रहें और अच्छे सुझावों को अपनाने की कोशिश करें!
अनिताः मुंबई की हर बिल्डिंग में जरूरी है डिस्पेंसरी!
व्यूज. कोरोना संकट ने लाइफ स्टाइल को बदलने के संकेत दिए हैं, इसी के मद्देनजर अब मुंबई में भी नए बदलाव करने की जरूरत महसूस की जा रही है.
आमतौर पर सौ-पचास परिवारों से एक गांव बनता है, लेकिन मुंबई में ऐसे हजारों वर्टिकल गांव- रेजिडेंशल बिल्डिंग हैं, जिनमें औसतन पचास से ज्यादा परिवार रहते हैं, तो इनके लिए पानी, बिजली, गैस, सफाई, सुरक्षा जैसी सुविधाओं के साथ-साथ हर रेजिडेंशल बिल्डंग में डिस्पेंसरी की व्यवस्था भी की जानी चाहिए.
इन दिनों जो हालात चल रहे हैं, बाहर कोरोना का खतरा है, तो घर के आसपास मेडिकल सपोर्ट अवलेबल नहीं होने से लोग बेहद परेशान हैं, खासकर सीनियर सिटीजन, प्रेगनेंट लेडीज, छोटे बच्चे आदि बेहद तनाव में हैं.
विभिन्न बिल्डिंगों में मेंटेनेंस के नाम पर हजारों रुपए प्रतिमाह लिए जाते हैं और इसी वजह से हर बिल्डिंग सोसाइटी के पास लाखों रुपए जमा हैं. लिहाजा, हर बिल्डिंग को पाबंद किया जाना चाहिए कि वह अपने परिसर में एक डिस्पेंसरी आवश्यक तौर पर स्थापित करे.
अक्सर ब्लड प्रेशर बढ़ने-घटने जैसे छोटे कारण से बड़ी परेशानी महसूस होती है, तो छोटी-मोटी चोट लगने पर व्यक्ति भाग कर बड़े अस्पताल में नहीं जा सकता है, इसलिए इन डिस्पेंसरी में प्राथमिक इलाज की व्यवस्थाएं की जानी चाहिएं.
इन डिस्पेंसरी में एग्रीमेंट के आधार पर डाॅक्टर, नर्स आदि को नियुक्त किया जाना चाहिए, तो जो छात्र एमबीबीएस कर चुके हैं या अंतिम वर्ष में हैं उन्हें यहां डाॅक्टर के साथ काम करने का अवसर देना चाहिए. डाॅक्टर सहित मेडिकल स्टाफ को तो बिल्डिंग सोसाइटी एक निश्चित मंथली पेमेंट करे ही, डाॅक्टर, लोगों से अपनी निर्धारित न्यूनतम फीस भी ले सकें, ऐसा इंतजाम होना चाहिए. इन बिल्डिंग के आसपास रहने वाले डाॅक्टरों को इस कार्य के लिए प्राथमिकता दी जानी चाहिए.
ऐसा नहीं है कि इस दिशा में सोचा नहीं गया है, लेकिन जो सोचा गया है उसमें यदि यह व्यवस्थाएं भी जोड़ दी जाएं तो मुंबईकर को बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं घर के पास मिल सकती हैं.
एनबीटी की खबर है कि…. बीएमसी के- प्रमुख और पेरिफेरल अस्पतालों से बोझ कम करने के लिए, बीएमसी प्राइमरी हेल्थ केयर पर फोकस करेगी. कुछ ही समय पहले बीएमसी स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों के साथ हुई बैठक में स्वास्थ्य विभाग के एडिशनल म्युनिसिपल कमिश्नर सुरेश काकानी ने प्राइमरी हेल्थ केयर को मजबूत करने का निर्देश दिए हैं.
खबर में बताया गया है कि आंकड़ों के अनुसार, सामान्य बीमारियों के इलाज के लिए भी मुंबईकर पेरिफेरल अस्पताल या प्रमुख अस्पतालों में जाते हैं, जिसके कारण न केवल अस्पतालों में भीड़ बढ़ती है, बल्कि इलाज में भी देरी होती है.
इसी समस्या के मद्देनजर सुरेश काकानी का कहना था कि महानगर में फैले डिस्पेंसरी के जाल से मरीजों को घर के पास इलाज मिल सकता है, लेकिन इनका इस्तेमाल बेहतर तरीके से न होने के कारण मरीजों को अस्पताल के चक्कर लगाने पड़ते हैं. हमारा उद्देश्य मरीजों को उनके घर के पास इलाज देना है, जिससे मरीजों को राहत मिलने के साथ ही बड़े अस्पतालों से मरीजों का बोझ भी कम होगा.
याद रहे, मुंबई में 186 डिस्पेंसरी हैं, लेकिन लोगों को इसकी जानकारी नहीं होने के कारण साधारण स्वास्थ्य समस्याओं के लिए भी लोग इनमें नहीं जाते हैं. प्रजा फाउंडेशन की 2019 की एक रिपोर्ट के हवाले से खबर में बताया गया है कि केवल 24 प्रतिशत मुंबईकर इलाज के लिए डिस्पेंसरी में जाते हैं.
बहरहाल, यदि हर बिल्डिंग में डिस्पेंसरी बनाना कम्पलसरी कर दिया जाए तो ब्लड प्रेशर चेक करना, इंजेक्शन लगाना, मरहम पट्टी करना, साधारण चेकअप करवाना आदि कार्यों के लिए लोगों को तनावग्रस्त होकर इधर-उधर भटकना नहीं पड़ेगा!
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अनिताः कोरोना संकट में बच्चों के साथ एक्सपेरिमेंट नहीं करें!
व्यूज. देश की राजधानी दिल्ली में कोरोना वायरस का अटैक जारी है और इस बीच जहां कई सरकारें स्कूल खोलने की संभावनाओं पर विचार कर रही हैं, वहीं दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया का यह निर्णय एकदम सही है कि- दिल्ली में स्कूलों को फिर से खोलने का सवाल ही नहीं उठता. स्कूलों को खोलकर फिर से उसे बंद नहीं कर सकते. इस तरह का प्रयोग नहीं किया जा सकता है!
सारे देश में कोरोना वायरस का अदृश्य अटैक जारी है. ऐसे में बच्चों पर किसी भी तरह का एक्सपरिमेंट ठीक नहीं कहा जा सकता है.
कोरोना से सुरक्षा के उपाय अपनाने के लिए समझदार बड़ों का क्या हाल है, यह हम देख रहे हैं, तो फिर नासमझ बच्चों का ध्यान कौन रखेगा?
आम दिनों में भी स्कूलों की लापरवाही के कारण बच्चों के साथ दुर्घटनाएं होती रहती हैं, तो स्कूल पिकनिक जैसे मौकों पर भी हादसे होते रहे हैं. ऐसे में कोरोना वायरस से बच्चे सुरक्षित बचे रहेंगे, इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा?
इस संबंध में मद्रास हाईकोर्ट का यह फैसला भी देखना महत्वपूर्ण है, जिसमें न्यायालय ने कहा कि- ऐसी विकट परिस्थिति में वह तमिलनाडु सरकार को दसवीं की बोर्ड परीक्षाएं 15 जून से आयोजित कराने की अनुमति नहीं दे सकती है.
तमिलनाडु सरकार के 15 जून से परीक्षा आयोजित कराने के फैसले को चुनौती दी गई थी, जिस पर जस्टिस विनीत कोठारी और न्यायमूर्ति आर सुरेश कुमार की खंडपीठ ने कहा कि- हम राज्य के नौ लाख से अधिक छात्रों की जान जोखिम में नहीं डाल सकते हैं.
कोर्ट ने तमिलनाडु सरकार से यह भी पूछा कि क्या सरकार यह लिखित में दे सकती है कि 15 जून से दसवीं की बोर्ड परीक्षा आयोजित कराने पर कोई भी छात्र कोरोना से संक्रमित नहीं होगा?
बच्चे देश का भविष्य हैं, इसलिए जब तक कोरोना संकट से मुक्ति नहीं मिल जाती है, तब तक किसी भी जगह स्कूल खोलने की परमिशन नहीं दी जानी चाहिए और यदि किसी जगह स्कूल खुल भी जाएं तो पेरेंट्स को अपने बच्चों को मौत के कुंए में नहीं धकेलना चाहिए, क्योंकि सरकार के लिए तो स्टूडेंट्स केवल संख्या हैं, लेकिन आपके लिए तो वे आपका सबकुछ हैं!
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अनिताः दारू की होम डिलीवरी, दवा चाहिए तो लाइन में आओ!
व्यूज. अगर शराब जैसा जहर चाहिए तो वह आपको घर तक उपलब्ध हो सकता है, लेकिन जिन्दा रहने के लिए राशन चाहिए तो लाइन में आइए?
खबरें हैं कि अब कई जगहों पर शराब घर-घर पहुंचाई जाएगी, लाजवाब! दारू की होम डिलीवरी, दवा चाहिए तो लाइन में आइए?
यह साफ संदेश है कि किसी की भी दिलचस्पी दारू, तंबाकू, गुटखा जैसे स्लो पोइजन को रोकने में नहीं है, सब इससे कमाना चाहते हैं, चाहे घर बर्बाद हो जाएं, परिवार टूट जाएं, बीमारी से लोग दम तोड़ दें?
अभी लाॅकडाउन में ढील मिली तो सबने सोचा कि सबसे पहले जिन्दगी का सामान मिलेगा, खानेपीने का सामान मिलेगा, परन्तु मिली भी तो क्या? दारू की बाटली!
होना तो यह चाहिए था कि इतने दिनों से लोगों ने शराब छोड़ रखी थी तो इसे आदत बन जाने देते, कम-से-कम कई परिवारों को शराब की बर्बादी से मुक्ति तो मिल जाती? शराब का प्रोडक्शन रोक देना था? शराबबंदी करनी थी?
लेकिन नहीं! यदि शराब बंद हो गई तो देश कैसे चलेगा?
जो लोग यह उम्मीद रखते हैं कि कोई उनकी खुशहाल जिंदगी के बारे में सोच रहा है, तो यह भ्रम निकाल देना चाहिए!
शराब, गुटखा, तंबाकू जैसे नशों से अपने परिवार की रक्षा आप स्वयं करें? आपको और आपके परिवार को बचाने कोई फरिश्ता नहीं आने वाला है!
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