खबरंदाजी. राजस्थान से लेकर पश्चिम बंगाल तक और कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक इतनी भाषाएं, बोलियां हैं कि एक भाषा के शब्द का अर्थ, भावार्थ और वजन दूसरी भाषा में जा कर बदल जाता है, यही वजह है कि सैम पित्रोदा के- हुआ तो हुआ, पर इतना हंगामा हुआ था. इस बार भाषाई चक्रव्यूह में उलझे हैं लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी!
हालांकि, लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने पीएम नरेंद्र मोदी पर विवादित टिप्पणी करने के बाद माफी मांग ली है. अधीर रंजन चौधरी का कहना है कि ऐसा गलतफहमी में हुआ है.
खबर है कि… उन्होंने कहा कि उन्होंने पीएम के लिए नाली शब्द का इस्तेमाल नहीं किया था. यदि पीएम मोदी इससे नाराज हैं तो वे माफी मांगते हैं. अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि पीएम को चोट पहुंचाने की उनकी कोई मंशा नहीं थी. यदि मेरे बयान से पीएम को चोट पहुंचा है तो वे व्यक्तिगत रूप से उनसे माफी मांगते हैं. मेरी हिन्दी अच्छी नहीं है, नाली कहने का मेरा मतलब वाटर चैनल से था.
उल्लेखनीय है कि लोकसभा में कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने विवेकानंद और पीएम नरेंद्र मोदी की तुलना के संदर्भ में कहा था कि कहां मां गंगा और कहां गंदी नाली. अधीर रंजन के इस बयान पर भाजपा सांसद नाराज हो गए और सदन में खूब हंगामा हुआ.
बाद में अधीर रंजन चौधरी ने सफाई दी कि- भाजपा के एक सांसद ने स्वामी विवेकानंद की तुलना प्रधानमंत्री से कर दी, क्योंकि दोनों के नाम में नरेंद्र है. इससे बंगाल के लोगों को ठेस पहुंची. कांग्रेस नेता ने कहा कि उस दौरान लोकसभा में मैंने कहा कि यदि आप मुझे उकसाएंगे तो मैं कहूंगा कि आप मां गंगा की तुलना गंदी नाली से कर रहे हैं?
कुछ समय पहले लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सैम पित्रोदा भी ऐसे ही भाषाई चक्रव्यूह में उलझ गए थे. हालांकि, 1984 के सिख दंगों को लेकर दिए उनके बयान पर मचे हंगामे के बाद सैम पित्रोदा ने माफी मांग ली थी और कहा था कि- मेरी हिंदी खराब है, मैं जो हुआ, वो बुरा हुआ, कहना चाहता था. बुरा हुआ को मैं दिमाग में ट्रांसलेट नहीं कर पाया. मेरे बयान को तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया.
कुछ हद तक यह बात सही भी है, क्योंकि हिन्दी के कई शब्द बंगाली, गुजराती आदि भाषाओं में अलग अर्थ-भावार्थ रखते हैं. यही नहीं, कई शब्द तो ऐसे हैं जो एक भाषा से दूसरी भाषा में जा कर गाली तक में बदल जाते हैं, हालांकि भाषाई मर्यादा के कारण ऐसे शब्दों का उल्लेख नहीं किया जा सकता, लेकिन उनका उपयोग किसी को भी परेशानी में डाल सकता है.
बाई एक ऐसा शब्द है जो एक राज्य से दूसरे राज्य में एकदम अलग अर्थ रखता है. कहीं यह माता के तुल्य सम्माननीय है, कहीं कामवाली बाई है, तो कहीं कोठेवाली बाई! हिन्दी का राजीनामा गुजराती में जा कर त्यागपत्र में बदल जाता है, तो गुजराती में पागलपन के लिए जो शब्द उपयोग में लिया जाता है, उसका उच्चारण करके ही कोई हिन्दी भाषी पगला सकता है?
हिन्दी में अकस्मात दुर्घटना हो सकती है, लेकिन गुजराती में तो अकस्मात का मतलब ही दुर्घटना है. गुजराती में ऐसे अनेक शब्द हैं, जिनके अर्थ, भावार्थ और वजन दूसरी भाषाओं से एकदम अलग हैं. इतना ही नहीं, कुछ शब्दों के अर्थ एकदम उल्टे हैं, जैसे नमक को गुजराती में मीठूं कहते हैं. यदि दक्षिण भारत में कोई पूछे कि- तमिल तेरी मां, तो उस पर गुस्सा होने की जरूरत नहीं है, क्योंकि वह केवल यह जानना चाहता है कि- तुम्हें तमिल आती है क्या?
दिलचस्प बात यह है कि एक राज्य से दूसरे राज्य में पहुंच कर कई बार हिन्दी तक बदल जाती है, शब्दों के लिंग बदल जाते हैं. कहीं दही खट्टा होता है, तो कहीं खट्टी, कहीं तार डाले जाते हैं, तो कहीं तार डाली जाती है, कहीं ट्रक पलटता है, तो कहीं ट्रक पलटती है, कहीं समीकरण सुलझाया जाता है, तो कहीं सुलझाई जाती है! कई ऐसी कहावतें भी हैं, जिनमें गालियों का उपयोग किया गया है, हालांकि अब ऐसी कहावतें ज्यादा प्रचलन में नहीं हैं, किन्तु कभी-कभार ये छप भी जाती हैं.
कई बार कुछ शब्दों के उच्चारण के चलते भी गलतफहमी हो जाती है, जिसका शिकार खुद पीएम मोदी हो चुके हैं. लोकसभा चुनाव के दौरान पीएम मोदी की गुजरात के पाटन में रैली थी, जिसका एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा था. करीब पन्द्रह सेकेंड के इस वीडियो के लिए यह दावा किया जा रहा था कि पीएम मोदी ने अपने संबोधन में गाली का इस्तेमाल किया? हालांकि, सच्चाई यह है कि पीएम मोदी ने कोई गाली नहीं दी, वे तो पानी की समस्या के बारे में गुजराती में अपना नजरिया पेश कर रहे थे. सियासी सयानों का मानना है कि भाषाई गड़बड़ी के कारण- हुआ तो हुआ, लेकिन बहुत बुरा हुआ!