राजस्थानी सिनेमा महोत्सव की खबर….https://www.youtube.com/watch?v=37ZYa-WSjLs&fbclid=IwAR0NmbjOpNLLB9ZQpmWximN3-GFGXdvK1RuViFTl_IZYFHftDgMWR9SJlHk
प्रदीप द्विवेदी. बीसवीं सदी में अस्सी के दशक में आपसी सहयोग से जब हमने पहली जीरो बजट राजस्थानी फिल्म- तण वाटे बनाई थी, तब से लेकर अब तक ज्यादातर फिल्में जीरो बजट के आसपास ही बन रही हैं.
सच्चाई तो यह है कि राजस्थानी फिल्में केवल हौसलों के दम पर जिंदा हैं, वरना तो राजस्थानी सिनेमा ने कभी का दम तोड़ दिया होता, क्योंकि इसके लिए आवश्यक सरकारी सहयोग-समर्थन नहीं मिलता है.
इसमें नाम तो है, लेकिन दाम नहीं है और ऐसे में राजस्थान दिवस के अवसर पर कला संस्कृति विभाग एवं राजस्थानी सिनेमा विकास संघ की ओर से राजस्थानी सिनेमा महोत्सव का आयोजन 25 से 27 मार्च 2020 तक जवाहर कला केन्द्र में करने का निर्णय प्रशंसनीय है.
राजस्थानी सिनेमा विकास संघ को इसके लिए बधाई देने के साथ-साथ सहयोग-समर्थन देने की भी जरूरत है.
राजस्थानी फिल्मों के लिए लंबे समय से सक्रिय संघ के अध्यक्ष शिवराज गुर्जर से प्राप्त जानकारी के अनुसार राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कुछ समय पहले अपने निवास पर महोत्सव के ब्रोशर का विमोचन किया था.
इस मौके पर संघ की ओर से गुजरात की तर्ज पर राजस्थानी फिल्मों की पॉलिसी बनाने के लिए गुजरात सरकार की अधिसूचना की गुजराती और हिंदी वर्जन की प्रतियों के साथ मुख्यमंत्री को ज्ञापन भी सौंपा गया.
संघ के संरक्षक विपिन तिवारी के अनुसार- पॉलिसी में मुख्य रूप से पारदर्शिता के साथ अनुदान की भिन्न-भिन्न श्रेणियों में नियमों एवं शर्तों के अनुरूप 5 लाख से 50 लाख रुपए तक अनुदान देने का प्रावधान है. राष्ट्रीय एवं अन्तरराष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त फिल्मों के लिये भी पॉलिसी बनायी गई है.
संघ के अध्यक्ष शिवराज गुर्जर ने बताया कि महोत्सव में राजस्थानी फिल्मों के प्रदर्शन के साथ ही संभागवार झांकियां भी सजाई जायेगी. सांस्कृतिक आयोजनों से सजे इस महोत्सव में राज्यभर से सिने प्रेमी, कलाकार एवं विभिन्न विद्यालयों के बच्चों सहित 1.5 से 2 लाख लोग भाग लेंगे.
इस महोत्सव के ब्रोशर के विमोचन के साथ ही उद्घाटन समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में सीएम गहलोत को आंमत्रित किया गया. इस मौके पर अभिनेता श्रवण सागर, शैलेन्द्र सिंह, अभिषेक भी मौजूद थे.
उल्लेखनीय है कि राजस्थान में एक से बढ़ कर एक हिन्दी, अंग्रेजी आदि भाषाओं की फिल्में बनी, लेकिन राजस्थानी फिल्मों ने कभी लंबा यादगार सुनहरा समय नहीं देखा. सुपर हिट के नाम पर बाबा रामदेव (1963), बाई चाली सासरिये (1988) जैसी बहुत कम फिल्में हैं.
राजस्थान, फिल्मी लोकेशन के लिहाज से श्रेष्ठ है, जहां पश्चिमी राजस्थान में रेगिस्तान का सागर है, तो दक्षिण राजस्थान में हरियाली का साम्राज्य है, लेकिन फिल्म बनाने के लिए जो तकनीकी सपोर्ट चाहिए, सरकारी सुविधाएं चाहिए, फिल्मों के लिए जो डिस्ट्रिब्यूशन नेटवर्क चाहिए, उनका अभाव है.
जिन राज्यों में हिंदी का असर कम रहा है, वहां तो क्षेत्रीय भाषाओं की फिल्में चलती रही हैं, लेकिन राजस्थान जैसे प्रदेश में, जहां हिंदी आसानी से बोली और समझी जाती है, वहां गुजरते समय के साथ क्षेत्रीय फिल्में कमजोर पड़ती गई हैं.
राजस्थानी फिल्मों के पास न तो करोड़ों का बजट होता है और न ही लेटेस्ट टेक्नोलाॅजी का सपोर्ट मिलता है, इसलिए राजस्थानी में क्वालिटी के लेवल पर श्रेष्ठ फिल्म बनाना बहुत मुश्किल काम हैं.
बहरहाल, राजस्थानी फिल्में आज भी अगर उड़ान भर रही हैं, तो उन फिल्मकारों के हौसलों के दम पर जिन्हें लाभ-हानि की परवाह नहीं है, वरना तो राजस्थानी फिल्म इंडस्ट्री के पास करोड़ों के बजट और सुविधाओं के पंख न तो पहले थे और न ही आज भी हैं!