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इनसे मिलो…. पहली वागड़ी फिल्म के हीरो हैं- भंवर पंचाल!
प्रदीप द्विवेदी. एक्कीसवीं सदी के लेखक, पत्रकार, फोटोग्राफर आदि शायद पहली वागड़ी फिल्म- तण वाटे के हीरो भंवर पंचाल (9414620080) को नहीं जानते हों, लेकिन 70 के दशक से उन्होंने वागड़ में कला, साहित्य, लेखन आदि के क्षेत्र में जो कार्य किए हैं, वे उल्लेखनीय हंै.
भंवर पंचाल 31 जुलाई 2019 को उदयपुर में सहायक अभियंता के पद से सेवानिवृत्त जरूर हो गए हैं, उन्हें सरकारी सेवा से मुक्ति मिल गई है, लेकिन अब उनकी एक नई पारी की शुरूआत हो रही है? कुछ-कुछ 70 के दशक जैसी!
कला, साहित्य, लेखन आदि के क्षेत्र में मेरी और भंवर पंचाल की शुरूआत एकसाथ हुई. यह वह समय था, जब बांसवाड़ा में ब्लैक एंड व्हाईट पासपोर्ट साइज के फोटो के लिए भी दो-तीन दिन इंतजार करना होता था. यही वजह है कि इस दौरान हमें इस क्षेत्र में कई काम पहली बार करने का अवसर मिला!
तब आज जैसे फोटोग्राफी, टाइपिंग, प्रकाशन, प्रसारण के साधन और संदर्भ उपलब्ध नहीं थे, इसलिए पहले साइकिल और बाद में मोटरसाइकिल से कईं यात्राएं की, जिसके नतीजे में प्रसिद्ध देवी त्रिपुरा सुंदरी, तलवाड़ा का सूर्य मंदिर, अरथूना के देवालय, मानगढ़ सहित वागड़ के अनेक दर्शनीय और ऐतिहासिक स्थलों की जानकारी, फोटोग्राफ आदि पहली बार कादम्बिनी, साप्ताहिक हिन्दुस्तान जैसी प्रमुख राष्ट्रीय पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए.
रंगीन फोटो छपने शुरू हुए तो साप्ताहिक राष्ट्रदूत के बैक कवर पेज पर जगह मिली. पहली बार राजस्थान विकास पत्रिका में माही बांध का रंगीन फोटो फ्रंट कवर पेज पर छपा.
अब तो फिल्म बनाना बच्चों के खेल जैसा हो गया है, लेकिन तब 8 एमएम के कैमरे से फिल्मांकन तो हम कर पा रहे थे, परन्तु मद्रास के प्रसाद लैब के पास भी 8 एमएम से 35 एमएम में फिल्म कनवर्ट करने की सुविधा नहीं थी. उस समय फिल्म बनाना इतना मंहगा था कि अनेक फिल्में 16 एमएम पर बना कर 35 एमएम पर कनवर्ट होती थी और उसके बाद रिलीज होती थी. हमने जो पहला फिल्मांकन किया था, उसे देखने के लिए पूर्व महारावल सूर्यवीर सिंह के महल जाना पड़ा था. फिल्मांकन तो अच्छा था, परन्तु डबिंग, एडिटिंग और 8 एमएम से 35 एमएम में फिल्म कनवर्ट करने की सुविधा के अभाव में काम रूक गया.
इस बीच, 80 के दशक में बांसवाड़ा मूल के प्रसिद्ध फोटोग्राफर सालेह सईद यहां आ गए. उनके साथ बांसवाड़ा में वीडियोग्राफी की तकनीक भी आ गई. पहली वागड़ी फिल्म के लिए तो एक नई दिशा मिल गई.
पहली वागड़ी फिल्म- तण वाटे में भंवर पंचाल, जगन्नाथ तैली, कैलाश जोशी और नागेन्द्र डिंडोर प्रमुख कलाकार थे. इस फिल्म में अभियंता भंवर पंचाल ने ईमानदार डाॅक्टर की भूमिका निभाई थी.
इस फिल्म का संगीत डाॅ. शाहिद मीर खान ने दिया था और इसका लोकप्रिय गीत- काम मले तो काम करं ने, ने मले तो हंू करं… भंवर, जगन्नाथ और नागेन्द्र डिंडोर पर फिल्माया गया था.
यह फिल्म ऋषभदेव में राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी के तत्कालीन अध्यक्ष वेदव्यास को प्रसिद्ध लेखक और वर्तमान में दूरदर्शन के वरिष्ठ अधिकारी शैलेन्द्र उपाध्याय ने भेंट की थी, जिसका पहला भव्य प्रदर्शन प्रसिद्ध कवि हरीश आचार्य के प्रयासों से खड्गदा में हुआ था. इस फिल्म के लिए पुरस्कार भी मिला, जिसने इसे पहली वागड़ी फिल्म होने की मान्यता प्रदान कर दी. इसके अलावा, भंवर पंचाल और सालेह सईद के साथ पहली बार माही परियोजना, तीरंदाजी जैसी डॉक्यूमेंट्री फिल्में भी बनाने का मौका मिला.
भंवर पंचाल ने वागड़ को करीब से देखा, जाना और समझा है. विश्वास है, उनका अनुभव वागड़ की उपलब्धियों की किताब में कुछ और सुनहरे पन्ने जोड़ेगा!