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राजेंद्र बोड़ा….. साहित्य उत्सव में सिने संगीत पर चर्चा!

प्रदीप द्विवेदी. राजस्थान के वरिष्ठ पत्रकार और विश्लेषक राजेंद्र बोड़ा, सिनेमा और गीत-संगीत से जुड़े विविध आयोजनों में तो सक्रिय रहते ही हैं, सिनेमा को लेकर अपने खास नजरिए से भी अक्सर अवगत कराते रहते हैं.
अभी जयपुर में चल रहे समानांतर साहित्य उत्सव में हुई सिने संगीत पर चर्चा पर उन्होंने लिखा….
जयपुर के जवाहर कला केंद्र में चल रहे समानांतर साहित्य उत्सव के दूसरे दिन आज एक सत्र में, पत्रकार श्याम माथुर का लेखक-समीक्षक नवल किशोर शर्मा के साथ सिने संगीत पर बड़ा दिलचस्प संवाद हुआ. चर्चा के केंद्र में थी नवल किशोर शर्मा की पुस्तक- फिल्म संगीत, संस्कृति और समाज.
सिने संगीत में बदलाव के बारे में श्याम माथुर के सवाल के जवाब में नवल किशोर शर्मा ने उसे दो भागों में विभक्त किया- 1980 के बाद का और उसके पहले का संगीत.
उनका कहना था कि तकनीक बदलाव से गानों में से मिठास खत्म हो गयी, उनके शब्द कमजोर हो गए.
नवल किशोर शर्मा ने माना कि फिल्मों और उनके संगीत का समाज पर हमेशा ही असर रहा है. यह असर परंपरागत कलाओं पर भारी भी पड़ा. सिने गीतों ने लोक गीतों और पारंपरिक सामाजिक गीतों को पीछे धकेल दिया.
आज के फिल्म संगीत पर उनकी टिप्पणी थी कि वह अब कालजयी नहीं रहा. अब तो तकनीशियन ही संगीतकार बनने लगे हैं.
नवल किशोर शर्मा ने बताया कि उनकी यह किताब विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में छपे लेखों का संकलन है. अब वे सिने संगीत में शास्त्रीय संगीत पर पुस्तक लिख रहे हैं.
यकीनन, इन कुछ वर्षों में गीत-संगीत के स्तर में काफी बदलाव आया है. इसकी एक वजह यह भी है कि युवा भाषाई चक्रव्यूह में उलझ गए हैं, जिसके कारण न तो वे हिन्दी को और न ही अंग्रेजी को ठीक से जीवन में उतार पा रहे हैं. इसके नतीजे में शब्दों के अर्थ-भावार्थ का वजन और अहसास ही कहीं खो गया है.
इसके अलावा, बीसवीं सदी में गीत-संगीत सार्वजनिक तौर पर केवल सुना जाता था, इसलिए गीत पक्ष का वजन ज्यादा था, अब डांस प्रधान हो गया है, लिहाजा संगीत की भूमिका बढ़ गई है. इतना ही नहीं, रेडी टू यूज म्यूजिक की भी कमी नहीं है.
प्रसिद्ध गीतकार नीरज को तो इस बदलाव का अहसास अस्सी के दशक में ही हो गया था, जब एक इंटरव्यू में मैंने उनसे जानना चाहा था कि उन्होंने फिल्मों के लिए गीत लिखना क्यों छोड़ दिया है, तो उनका कहना था कि- आजकल कफन बता कर कहा जाता है कि इसके साइज की लाश लाओ? संगीत सुना कर कहते हैं कि इसके लिए गीत लिखो!

गीतों के भविष्य को लेकर नीरज का कहना था- गीतों की किस्मत में एक दिन ऐसा आना है, वो उतना ही महंगा होगा, जो जितना ही सस्ता होगा…..

*राजेन्द्र बोड़ा….  https://www.facebook.com/rajendra.bora.77

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