अनिता (बॉलीवुड एडवाइजर)
इन दिनों फिल्में तो तेजी से बन रही हैं, लेकिन किस कहानी पर फिल्म बनाएं, यह बहुत बड़ी समस्या है, क्योंकि आज की जरूरत के हिसाब से कहानियां मिलना मुश्किल है और जिनके पास कहानियां हैं, वे फिल्म मेकर तक पहुंच नहीं पा रहे हैं. ऐसे में पंजाबी, मराठी, राजस्थानी, गुजराती जैसी भाषाओं में बननेवाली अच्छी फिल्मों को हिन्दी में बनाया जा सकता है.
ऐसा नहीं है कि पहले कभी यह नहीं हुआ है, दक्षिण भारत की कई फिल्में हिंदी में बनी और सुपर हिट भी रही हैं.
मैं लगातार अलग-अलग भाषाओं की फिल्में देखती हूं और ऐसी कई फिल्में हैं, जो सोचनें पर मजबूर कर देती हैं, इन पर हिंदी फिल्म बन सकती हैं.
ताजा…. मैंने चौपाल पर एक पंजाबी फिल्म- डेथ डे देखी, इस छोटी फिल्म ने मेरे दिल को छू लिया, यह फिल्म न केवल एक भावपूर्ण कहानी है, बल्कि यह हमें जीवन के महत्वपूर्ण पहलुओं के बारे में भी सोचने के लिए मजबूर करती है.
इस फिल्म की कहानी एक बुजुर्ग व्यक्ति के इर्द-गिर्द घूमती है, जो अपने बच्चों के बाहर जाने के बाद अकेला हो जाता है, यह फिल्म हमें दिखाती है कि कैसे हमारे समाज में बुजुर्ग लोग अकेले और उपेक्षित हो जाते हैं और ऐसी जिंदगी जी नहीं पा रहे हैं, वह आत्महत्या भी नहीं करना चाहते, लिहाजा इस फिल्म का बुजुर्ग अपनी मौत की तारीख जानने के लिए कभी अस्पताल जाता है, तो कभी ज्योतिषी के पास, उसे तारीख तो मिलती है, लेकिन मरता नहीं है, वह तारीख इसलिए जानना चाहता है ताकि उसकी मौत से पहले एक बार उसके बच्चे उससे आकर मिल लें.
इसके बाद क्या होता है, यह जानने के लिए यदि आपको पंजाबी समझ में आती है तो चौपाल पर इस फिल्म को देख सकते हैं.
इस फिल्म का सबसे महत्वपूर्ण संदेश यह है कि हमें अपने बुजुर्गों की देखभाल करनी चाहिए और उन्हें अकेला नहीं छोड़ना चाहिए, यह फिल्म हमें यह भी सोचने के लिए मजबूर करती है कि हमारे समाज में आजकल बुजुर्गों के प्रति कैसे व्यवहार किया जा रहा है और विदेश जानेवाले बच्चों की सोच और जरूरतें कैसे बदल जाती हैं?
इस फिल्म की कहानी बहुत ही भावपूर्ण और विचारोत्तेजक है.
अंत में, मैं यह कहना चाहती हूं कि डेथ डे एक बहुत ही अच्छी फिल्म है, जिसे हर किसी को देखना चाहिए, यह फिल्म हमें अपने जीवन के महत्वपूर्ण पहलुओं के बारे में सोचने के लिए मजबूर करती है और हमें अपने बुजुर्गों की देखभाल करने के लिए प्रेरित करती है!