प्रदीप द्विवेदीः कर्नाटक के नाटक का अंत तो तय है? लेकिन, राजस्थान में तख्ता-पलट आसान नहीं है!
नजरिया. कर्नाटक में कांग्रेस-जेडीएस के 16 बागी विधायकों के इस्तीफे के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यथास्थिति बनाए रखने का निर्देश दिया है. इसके बाद, सीएम एचडी कुमारस्वामी ने विधानसभा अध्यक्ष रमेश कुमार से कुछ वक्त की मांग की है, ताकि वे सदन में बहुमत साबित कर सकें, लेकिन क्या वे ऐसा कर पाएंगे?
कर्नाटक की राजनीतिक हालत यह है कि- छूरी तरबूज पर गिरे या तरबूज छूरी पर, कटना तरबूज को ही है, क्योंकि सियासी संभावनाएं कुछ ऐसी हैं…
एक- बागी 16 विधायक कुमारस्वामी सरकार के खिलाफ मतदान करेंगे तो सरकार को 100 वोट मिलेंगे, जो बहुमत से 12 कम होंगे. बागियों की सदस्यता खत्म हो जाएगी, लेकिन कुमारस्वामी की सरकार भी बच नहीं पाएगी.
दो- कांग्रेस के बागी विधायकों के त्यागपत्र स्वीकार हो जाएं, तब भी बहुमत के लिए 104 विधायकों की जरूरत होगी, अर्थात… सरकार तब भी बच नहीं पाएगी.
तीन- कांग्रेस के बागी विधायकों के त्यागपत्र स्वीकार नहीं हों, लेकिन बागी 16 विधायक सदन से गैर-मौजूद रहें, तो सदस्य संख्या रहेगी 207, मतलब… तब भी सरकार के लिए बहुमत के लिए जरूरी आंकड़े से 4 वोट कम रह जाएंगे.
चार- यदि कांग्रेस के बागी एमएलए अयोग्य करार दिए जाते हैं तब भी बहुमत के लिए 104 समर्थक चाहिए, जाहिर है, इस हालत में भी सरकार गिर जाएगी.
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि… कर्नाटक के नाटक का अंत तो तय है, सियासी सिद्धांत हारेंगे, जोड़तोड़ की राजनीति जीत जाएगी.
याद रहे, सियासी जोड़तोड़ के चलते अब तक कांग्रेस के 13 और जेडीएस के 3 विधायकों ने इस्तीफा दिया है. अब तक का सियासी समीकरण बताता है कि राजनीतिक गणित सरकार के पक्ष में लाने के लिए कम-से-कम चार विधायकों की जरूरत है, वरना सरकार का चारों खाने चित होना तय है!
कर्नाटक और गोवा में जिस तरह से कांग्रेस के विधायक टूटे हैं उसके मद्देनजर राजस्थान में भी कांग्रेस की चिंता संभव है, लेकिन कुछ कारणों से राजस्थान में कांग्रेस सरकार का सियासी तख्ता-पलट आसान नहीं है. सबसे पहला कारण है राजस्थान में कांग्रेस विधायकों का संख्याबल. दो सौ सीटों वाली राजस्थान विधानसभा में बहुमत का आंकड़ा 101 है.
यहां कांग्रेस के पास 100 और बीजेपी के पास 73 एमएलए हैं, लेकिन कांग्रेस को यहां पर 10 से अधिक निर्दलीय विधायक भी समर्थन दे रहे हैं, यही नहीं, बीएसपी का भी सरकार को समर्थन प्राप्त है.
दूसरा बड़ा सवाल बीजेपी में नेतृत्व का है. इस वक्त भी बीजेपी में सबसे प्रभावी नेता पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ही हैं. यदि केन्द्र का समर्थन प्राप्त हो तो वे इस तरह की सियासी तोड़फोड़ को कामयाब कर सकतीं हैं, परन्तु राजे और शाह के सियासी संबंध जगजाहिर हैं, लिहाजा भाजपा का केन्द्रीय नेतृत्व उनके नाम पर शायद ही राजी हो. यदि सीएम के लिए और कोई नाम सामने आता है, तो उसके लिए वसुंधरा राजे का समर्थन हांसिल करना मुश्किल है.
तीसरा, सीएम अशोक गहलोत खुद ऐसी सियासी तोड़फोड़ से निपटने में सक्षम हैं. याद रहे, गुजरात, कर्नाटक आदि राज्यों में पूर्व में जब ऐसी ही राजनीतिक तोड़फोड़ की कोशिशें की गई थीं, तब उन्हें नाकामयाब करने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही थी.
राजस्थान में बीजेपी के समर्थन में एक ही बड़ा मुद्दा है- कांग्रेस में गुटबाजी. यह राजस्थान में कांग्रेस का सबसे पुराना राजनीतिक रोग है और इसके कारण कई बार कांग्रेस को नुकसान उठाना पड़ा है.
देखना दिलचस्प होगा कि क्या इस बार भी कांग्रेस की गुटबाजी के कारण राजस्थान की जीती हुई बाजी कांग्रेस के हाथ से निकल जाएगी
गुजरते समय के साथ कांग्रेस कमजोर होती गई है और बीजेपी मजबूत होती गई है, तो इसके कई कारण हैं?
एक- कभी कांग्रेस देश का सबसे बड़ा संगठन था, लेकिन अब बीजेपी सबसे ताकतवर संगठन है, कारण यह है कि कांग्रेस का कागजी विस्तार ज्यादा हुआ है, जबकि बीजेपी का जमीनी विस्तार हुआ है! यहां तक कि सदस्य तो दूर, कांग्रेस संगठन भी कागजों में जितना नजर आता है, उतना जमीन पर नजर नहीं आता है, मतलब… समर्पित सदस्यों का अभाव बढ़ता जा रहा है? यही नहीं, इतने लंबे समय तक सत्ता में रहने के कारण कांग्रेस में नेता ज्यादा हैं, कार्यकर्ता कम हैं!
दो- बीजेपी के पास संघ जैसा समर्पित सदस्यों वाला विशाल संगठन है, जबकि कांग्रेस का साथ देने वाला कोई बड़ा और प्रभावी संगठन नहीं है!
तीन- एक्कीसवीं सदी में राजनीतिक हूटिंग करने वाली सोशल मीडिया सेना की बड़ी भूमिका है, जो सच को झूठ और झूठ को सच में बदलने का दमखम रखती है! कांग्रेस के समर्थन में भी अब सोशल मीडिया सेना तो है, किन्तु बीजेपी समर्थकों जैसी आक्रामक, सक्रिय और प्रभावी नहीं है? सोशल मीडिया ही वह प्लेटफार्म है, जिसने सच्चे कम, झूठे ज्यादा किस्से वायरल करके राहुल गांधी की पप्पू इमेज बनाने का काम किया था, यह अभी भी जारी है, लेकिन अति होने के कारण उतना असरदार नहीं है!
चार- बीजेपी का हर काम पाॅलिटिकल मैनेजमेंट के कारण योजनाबद्ध तरीके से हो रहा है, जबकि ऐसा सियासी प्रबंधन कांग्रेस में दिखाई नहीं देता है?
पांच- कांग्रेस के पास वास्तविक मुद्दें तो हैं, परन्तु भावनात्मक मुद्दों का अभाव है, यही वजह है कि बहुत बड़ी उपलब्धियों के अभाव में भी बीजेपी केवल राष्ट्रवाद के जरिए लोकसभा चुनाव जीतने में कामयाब रही है?
छह- राहुल गांधी अपने पिता राजीव गांधी की तरह सरल प्रकृति के हैं, जबकि राजनीतिक चतुराई के बगैर सियासत की दुनिया में कामयाबी केवल तकदीर से ही मिलती है?
लेकिन… कांग्रेस के पास आने वाले समय में सबसे बड़ा सियासी हथियार होगा बीजेपी के वादे? इन्हें पूरे करना आसान नहीं है, इसलिए जनता तो दूर, बीजेपी के लिए कट्टर समर्थकों की भी राम मंदिर निर्माण, धारा 370 हटाना, गोहत्या पर रोक जैसी उम्मीदों पर खरा उतरना आसान नहीं होगा!