प्रदीप द्विवेदी. जब किसी डाॅक्टर से मिल कर कोई पेशेंट यह कहे कि मेरी आधी बीमारी तो आपसे बात करके ही खत्म हो गई, या फिर कोई मां कहे कि मेरा बेटा आपके जैसा संस्कारी हो, तो मान लेना चाहिए कि वह एक आदर्श डाॅक्टर है!
डॉ. युधिष्ठिर त्रिवेदी भी ऐसे ही डाक्टर हैं, जिन्हें मैं जानता हूं. वे वागड़ के ही नहीं, देश-विदेश के कई लोगों की नजरों में आदर्श डाॅक्टर हैं. वे न केवल लोगों का इलाज करते हैं, बल्कि लोग बीमार ही न हों, इसके लिए उत्साह के साथ अच्छे स्वास्थ्य के लिए योग करवाते हैं, ज्ञानवर्धक लेख लिखते हैं और सलाह भी देते हैं.
डाॅ. त्रिवेदी को ये संस्कार अपने परिवार और आरएसएस से मिले हैं. उनके पिता कोदरलाल त्रिवेदी और माता सरस्वती देवी ने सरकारी सेवा में रहते हुए निस्वार्थ भाव से जनहित के कार्य किए, तो स्वयं डाॅ. त्रिवेदी ने भी अपनी सरकारी सेवा के दौरान उल्लेखनीय कार्य किए. उन पर तपस्वी मौन साधक उनके नानाजी स्वामी शंकरानंद वानप्रस्थी सहित स्वामी रामानंद जैसे संतों का विशेष प्रभाव रहा, जो न केवल सर्वसमाज के उत्थान के लिए ताउम्र कर्मयोगी बने रहे, वरन श्रीपति राय दवे को कलकत्ता से बुला कर बांसवाड़ा में संघ कार्य प्रारंभ करवाया. स्वामी शंकरानंद स्वयं तो नियमितरूप से गायत्री यज्ञ करते ही थे, बांसवाड़ा के कुशलबाग मैदान में सबसे बड़े गायत्री यज्ञ का आयोजन भी उन्होंने किया.
यही नहीं, सत्तर वर्ष की उम्र में स्वामी शंकरानंद वानप्रस्थी ने औदिच्य समाज में शिक्षा और संस्कार के लिए वागड़ क्षेत्रीय औदिच्य शिक्षा प्रचार समिति का गठन किया, पं. गौमतीशंकर पाठक, पं. लक्ष्मीनारायण द्विवेदी, पं. नारायणलाल पंडया, पं. देवशंकर त्रिवेदी, पं. नटवरलाल भट्ट, पं. जयप्रकाश पंडया, पं. कोदरलाल त्रिवेदी तथा समाज के कई अन्य प्रमुख लोगों के सहयोग, समर्थन से राती तलाई, बांसवाड़ा में छात्रावास का निर्माण किया. डाॅ त्रिवेदी भी उन्हीं संस्कारों के साथ सक्रिय हैं.
वे सेवा को अवसर मानते हैं, अपनी पुस्तक विचार प्रवाह में डाॅ. त्रिवेदी लिखते हैं… आभार! ईश्वर ने दिया मदद का अवसर… 5 जुलाई 2017 को सैन फ्रांसिस्को से भारत आते हुए भगवान ने एक बार फिर एक रोगी की मदद का अवसर दिया. नीदरलैंड की उड़ान में प्लेन के दरवाजे पर एक घबराए हुए भारतीय दंपत्ति को दो विमान परिचारिकाओं से बहस करते हुए देखा. मेरी पत्नी भारती ने घबराई हुई महिला से पूछा क्या बात है? तो उस महिला ने बताया कि मेरा जी बहुत घबरा रहा है, मुझे हवाई जहाज में बैठने से डर लग रहा है. इतने में उसके पुणे निवासी पति जो बैंक के सेवानिवृत्त अधिकारी हैं, ने बताया कि मेरी पत्नी साइकिक डिसऑर्डर की मरीज है, अभी बेटी को यहीं अमेरिका छोड़कर हम वापस घर जा रहे हैं. यहां इसको घबराहट होने से यह एयर होस्टेस हमें ना तो विमान में घुसने दे रही है तथा ना ही किराया वापस किया जा रहा है. भारती ने उनसे कहा कि मेरे पति डॉक्टर हैं, यह भाभीजी को देख लेंगे. मैंने उस महिला की पल्स तथा जनरल कंडीशन देखी जो ठीक ही लगी, हार्ट डिजिज, डायबिटीज, ब्लड प्रेशर आदि के बारे में पूछा, उन्होंने बताया कि अभी ही जांच करवाई थी, यह कुछ बीमारी नहीं है, इनका पुणे के प्रसिद्ध साइकेट्रिस्ट डॉक्टर का इलाज चल रहा है. मेरे द्वारा देखने तथा कंधे पर हाथ रखकर यह कहने पर कि आप घबराएं नहीं थोड़ा रेस्ट करेंगे तो अभी ठीक हो जाएंगी. देखिए, आप एक गोली खा लें तथा मैं और आप दोनों गायत्री मंत्र बोलते हैं. भगवान अभी आपको अच्छा कर देंगे. इस पर उस महिला की घबराहट थोड़ी कम हुई तथा वह प्लेन में आने को तैयार हो गई. इस पर भारती ने फिर विमान परिचारिका को कहा कि मेरे पति डॉक्टर हैं. यह बीमार को ठीक करने की जिम्मेदारी लेते हैं. आप इन्हें प्लेन में प्रवेश करने दें. विमान परिचारिका ने भी उन्हें रास्ता दे दिया, तब हम दोनों गायत्री मंत्र बोलते हुए प्लेन में उनकी सीट तक गए तथा उनको सांत्वना देकर बिठाया. उनकी घबराहट कम होती ही गई और पन्द्रह मिनट बाद तो वे दोनों पति-पत्नी मेरी सीट पर आकर मुझे और भारती को बहुत-बहुत धन्यवाद दे रहे थे कि आपके कारण अब मेरी तबीयत बिल्कुल ठीक है. बाद में एम्स्टर्डम में प्लेन बदलते समय हमने साथ फोटो भी खिंचवाई. इसके पहले दो विमान परिचारिकाओं ने आकर मुझे धन्यवाद देते हुए एयरलाइंस का प्रतीक चिन्ह भेंट किया. मैंने जीवन में महसूस किया है कि चिकित्सक द्वारा कहे गए सांत्वना के दो शब्द भी कभी-कभी रोगी पर गहरा प्रभाव दिखा जाते हैं!
क्योंकि? लोग डाॅक्टर को धरती पर भगवान मानते हैं, इसलिए डाॅक्टर को भी देवधर्म निभाना चाहिए, उनके लिए पेमेंट नहीं, पेशेंट ही महत्वपूर्ण होना चाहिए!